पोलिस- हम भी नेता नहीं है। हम आपके दुश्मन नहीं है। लेकिन किस चीज का समय चल रहा है पता है ना?
किसान :- अरे साहब, जब जिंदा ही नहीं रहेंगे तो कोरॉना से क्या होगा?
वो पुलिस वाला सही था अभी समय किस चीज का चल रहा है आपको पता है ना! लेकिन कुछ ही दिन पहले बिहार में और अलग अलग राज्यो में चुनाव हुए है, जहां हजारों की संख्या में भीड़ पहुंचती थी। तब कौन सा समय चल रहा था?
आज जिस केंद्र सरकार को किसानों से कॉरोना बढ़ने का खतरा हो रहा है उसी सरकार को बिहार में लाखो लाखो की भीड़ बुलाने समय में जिम्मेदारी की परवाह थी या नहीं?
चाहे पक्ष हो या प्रतिपक्ष सब चुनाव आयोग के नियमो की धज्जियां उड़ाते हुए भीड़ भाड़ , रैली , बिना मास्क के लोगो को इकट्ठा करना ये सब कर रहे थे उस समय लोगो की परवाह थी या नहीं? आज अचानक से परवाह कैसे? क्यू? राजनीति? लेकिन ये कैसी राजनीति जिसमे जनता की किसी को परवाह ही नहीं? ये लोकतंत्र है या सत्ता और धनबल की लड़ाई?
अगर समय निकले तो सोचिएगा की किसानों के लिए कोरोना है लेकिन नेता कोरोनावायरस प्रूफ हैं क्या?
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