आत्मरक्षा से अभिप्राय खुद की रक्षा करने से है। आत्मरक्षा करते समय व्यक्ति सामने वाले को पीट भी सकता है या फिर किसी की जान भी ले सकता है लेकिन यदि हमारे पास सबूत है कि यह सब आत्मरक्षा के दौरान हुआ है तो वह दंडनीय नहीं है।
प्रश्न यह उठता है कि आत्मरक्षा में किसी को कितना चोट पहुंचाया जा सकता है, और क्या जिस व्यक्ति ने किसी पर हमला किया उसे भी आत्मरक्षा का अधिकार होता है।
आईपीसी के चैप्टर फोर के अंतर्गत साधारण अपवाद की बात की गई है।इसके अंतर्गत 96 से 106 तक की धाराएं आत्मरक्षा की बात करती है। मूवी में हम अक्सर देखते हैं कि हीरो अक्सर कई सारे लोगों को मार देता है और उसके बाद भी जेल नहीं जाता,इसके पीछे आत्मरक्षा की अवधारणा काम करती हैं। आप अक्सर फिल्मों में देखते हैं कि फिल्म बीत जाने के बाद जब आखिरी में हीरो और विलेन आमने सामने होता है, हीरो के पास पिस्टल है और विलेन खाली हाथ है तो आपका दिमाग कहता है चल जल्दी मार गोली, और हमें भी अपना घर जाने दे। लेकिन हमारा हीरो पिस्टल साइड में फेंक देता है, अगर इस समय हीरो विलेन को गोली मार दे तो विलन जिसके ऊपर कई सारे चार्जेस हैं कई सारे अपराध उसने कर रखे हैं दुनिया का सबसे बेकार आदमी वह है,यह आपको पता है लेकिन अगर हीरो विलेन को गोली मार दे तो या हत्या होगी। हीरो समझदार हैं वह पिस्टल फेंक देता है उसका कारण यह है कि हमारी आईपीसी कहती है 'आप किसी को उतनी ही हानि पहुंचा सकते हैं जितना आप को पहुंचाने की पॉसिबिलिटी है ।' मतलब अगर सामने वाले के हाथ में तलवार है और आपके हाथ में तलवार है यह बराबरी का मामला है पुराने जमाने की फिल्मों में आपने देखा होगा कि हीरो के पास तलवार होता है विलन सामने निहत्था है दोनों आमने-सामने होते हैं तलवार किनारे गिरी पड़ी है तो हीरो तलवार उठा कर पहले विलन को दे देता है फिर लड़ाई करते हैं। हीरो जानता है कि अगर वह निहत्थे पर वार करेगा तो यह हत्या का अपराध होगा । ' कहता है कि कोई बात अपराध नहीं है तो प्राइवेट आत्मरक्षा क्या है'। इस बात को सेक्शन 97 में क्लियर किया गया है "अपनी या दूसरों की शरीर की रक्षा करने के लिए या अपनी या दूसरे की प्रॉपर्टी की रक्षा करने के लिए अगर कोई कार्य किया जाए तो वह अपराध नहीं है"। यहां पर हम विलन और हीरो के आमने सामने की बात को ठीक से समझ सकते हैं जहां हीरो के हाथ में पिस्टल है और विलन खाली हाथ है। यहां विलन के पास भी आत्मरक्षा का अधिकार है तो इसका उत्तर है नहीं जो शुरुआत करता है उसके पास आत्मरक्षा के अधिकार नहीं है ।इसे हम सेक्शन 97 के उदाहरणों के द्वारा समझ सकते हैं सेक्शन 97 कहता है ' किसी ऐसे कार्य के विरुद्ध जो चोरी, लूट, रिष्टि या आपराधिक अतिचार की परिभाषा में आने वाले अपराध हैं या जो चोरी, लूट, कुचेष्टा या आपराधिक अतिचार करने का प्रयत्न है। सेक्शन 192 बताता है कि कब शरीर में आत्मरक्षा में किसी व्यक्ति को जान से मारा जा सकता है मतलब उसका मर्डर किया जा सकता है। सेक्शन 103 में या लिखा गया है कि कब प्रॉपर्टी को बचाने के लिए किसी व्यक्ति को जान से मारा जा सकता है। सेक्शन 100 में इन प्रश्नों को बिल्कुल साफ किया गया है उसमें कहा गया है कि-
(1) ऐसा हमला जिससे व्यक्ति को यह आशंका हो कि उस हमले का परिणाम मृत्यु होगी यदि हमला ऐसा है।
(2)यदि हमला ऐसा है जिससे आशंका यह है कि उसका परिणाम घोर उपहती होगी।
(3)यदि हमला ऐसा है जिसका परिणाम रेप या बलात्संग
होगा।
(4)यदि हमला ऐसा है जिसका परिणाम अन्य प्राकृतिक विरुद्ध काम होगी।
(5)यदि हमला ऐसा है जिसका परिणाम व्यपहरण या अपहरण होगा।
(6)यदि हमला ऐसा हो जिसका परिणाम सदोष पर विरोध होगा।
(7)यदि हमला ऐसा है जिसका परिणाम एसिड अटैक होगा।
यदि इनमें से कोई भी एक बात है तो शरीर की प्रतिरक्षा में किसी को जान से मारा जा सकता है । किसी की मृत्यु कारित की जा सकती है।
वहीं 103 में जहां कब संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के आधार का विस्तार मृत्यु कार्य करने तक का होता है-
लूट का,रात्रि गृह भेदन,अग्नि द्वारा रिष्टि(जो किसी ऐसे निर्माण तंबू या जलयान को की गई है जो मानव आवास के रूप में या संपत्ति की अभिरक्षा के स्थान के रूप में उपयोग में लाया जाता है।),यदि अपराध चोरी का है, वृष्टि का है ,अतिचार का है, या किसी व्यक्ति को लगता है कि इसका परिणाम मृत्यु होगा तो भी ऐसे व्यक्ति को मृत्यु कार्य की जा सकती है इसे हम एक उदाहरण से समझ सकते हैं । A नाम के व्यक्ति को पता चलता है कि B नाम का व्यक्ति उसके घर में घुसा है और चोरी कर रहा है ।A अपने घर का दरवाजा खोलता है और देखता है कि B के हाथ में हथियार है उसके पास पिस्टल है, या तलवार है ,या फिर ऐसी वस्तु के साथ है जिसे मृत्यु हो सकती है, तो लॉ कहता है कि हमारी सेक्शन 103(a) को यह अधिकार देता है कि A,Bको जान से मार सकता है।
मान लेते हैं कि किसी भीड़ ने किसी अकेले व्यक्ति पर हमला किया। जैसे कि दंगे-फसाद में होता है ,यह व्यक्ति जो अकेला है और आत्मरक्षा में भीड़ पर गोली चलाता है ।तो हो सकता है कोई निर्दोष लोग मारे जाएं कोई बच्चा भीड़ में शामिल है वह मारा जाए किसी महिला को गोली लग जाए।Section-106 अधिकार देता है कि ऐसी आत्मरक्षा का प्रयोग कर सकते हैं चाहे किसी निर्दोष को भी चोट लग जाए या उसकी मृत्यु हो जाए ।
आत्मरक्षा के अंतर्गत व्यक्ति अपनी जान माल की रक्षा करते हुए किसी को हानि भी पहुँचा सकता है और ऐसा ही वह किसी दुसरे की रक्षा करने के लिए भी कर सकता है लेकिन माल के लिए नहीं। आत्मरक्षा का अधिकार जगह और परिस्थिति पर भी निर्भर करता है। किसी के घर में घुसकर उसे पीटने को आत्मरक्षा नहीं कहा जा सकता है। आत्मरक्षा तभी तक मान्य है जब आपके सामने कोई खतरा हो और आप खुद को उससे बचाने की कोशिश करे। किसी महिला से कोई व्यक्ति यदि जबरदस्ती करने की कोशिश करता है तो तब भी वह महिला अपनी आत्मरक्षा में उसे पीट सकती है या फिर किसी हथियार से भी उसपर वार कर सकती है।
अपनी खुद की रक्षा करना हर व्यक्ति को आना चाहिए और उसे खुद को इतना सक्षम बनाना चाहिए लेकिन किसी भी व्यक्ति को आत्मरक्षा के अधिकार का गलत फायदा नहीं उठाना चाहिए। हमें सुरक्षा के नए तरीके सीखने चाहिए और महिलाओं को भी आत्मरक्षा करनी सिखानी चाहिए। हमारी खुद की सुरक्षा हमारे हाथ में हैं और हमें उसका प्रयोग करना आना चाहिए। जिस दिन सब आत्मरक्षा करना सीख जाऐंगे उस दिन वह बिना किसी डर के घूम पाऐंगे।
लेखक:- सुधांशू झा
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