गौरतलब है कि आजादी के समय देश को दो टुकड़ों में बांट दिया गया। लेकिन ध्यान देने योग्य बात ये है कि जहां एक तरफ एक देश इस्लामिक देश बना वही कुछ नेताओं की अकर्मण्यता और सत्ता तथा सम्मान की लालसा ने बहुसंख्यकों के ख्वाब की धज्जियां उड़ाते हुए देश को धर्मनिरपेक्ष कहा। प्रस्तावना जिसे भारतीय संविधान की आत्मा कहा गया था उसमे भी सत्ता लोभियों ने अपने वोट बैंक बनाने के चक्कर में समाजवाद और पंथनिरपेक्ष जोड़ दिया।
संशोधित प्रस्तावना
1.जब नीति निर्माताओं के वंशज अपनी मर्जी से भारत को अपने पूर्वजों की जागीर समझ कर मूल संविधान में संशोधन कर देते है तो क्या उन्हें ये हक है कि वो किसी दूसरे संशोधन पर सवाल उठा कर उसे गलत ठहरा सके?
आपके जवाब की प्रतीक्षा है।
भारतीय संविधान के धारा 44 में समान न्याय संहिता की बात की गई है पर सवाल ये बनता है कि आखिर सरकार की ऐसी कौन सी दुविधा है जिसके कारण वह इस कानून को नहीं ला रही। क्या उसका वोट बैंक खत्म होने का खतरा है या असल में वो जिस एजेंडे पर काम कर रहे हैं वो खत्म हो जाएगा?
आखिर ऐसा कौन सा कारण है कि एक देश में दो कानून चल रहे है? अगर देश धर्म निरपेक्ष है तो मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड चलने का कारण क्या है और अगर देश धर्म निरपेक्ष नहीं है तो बहुसंख्यक आबादी को उनका हक क्यों नहीं मिल रहा?
अचानक एक दिन लालकिले के प्राचीर से देश के प्रधानमंत्री बोल उठते है कि देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है । अगर ऐसा है तो 1947 में जो बटवारा हुआ था क्या वो जवाहर लाल नेहरू का सत्ता प्रेम का नतीजा था? अगर ऐसा है तो क्या हिन्दू के लिए धरती पर कोई जगह नहीं बची? अगर ऐसा है तो धर्म निरपक्षता जो हर बच्चे को स्कूल से सिखाया जाता है वो ढकोसला है?
देश के राजदूत उसके बाद अनेक पदो पर रहते हुए देश के उपराष्ट्रपति जब अपने कार्यकाल को पूरा कर अपने पद से हटने लगते हैं तो अचानक से उनको याद आता है कि देश असहिष्णु हो गया है और भारत रहने वाली जगह नहीं है।
पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी झंडोत्तोलन में।
ऊपर के फोटो में आप साफ देख सकते हैं कि जब सभी भारत के झंडे को सलामी दे रहे है पूर्व उपराष्ट्रपति सीधे खड़े हैं।
जिस देश के बहुसंख्यक समुदाय को उसका हक ना मिले।
साधुओं के जिस देश में उनकी हत्या साजिश के तहत पीट पीट के कम्युनिस्ट, एनसीपी के नेताओ के सामने कर दी जाए ( सूत्र: डीएनए जी न्यूज)। जिस देश में बहुसंख्यकों को जो उस देश की संपदा हैं और जिन्होंने देश के लिए अपना सर्वस्व त्याग दिया उनसे ज्यादा हक देश तोड़ने वाली कौम को मिल जाए ये सरासर उस देश के साथ बेईमानी है।
बेईमानी की एक अपनी खासियत होती है कि ये ज्यादा दिनों तक नहीं चलती। शायद देश कुछ बेईमान नेताओ को समझ गया है और सत्ता एक सशक्त भारतीय के हाथो में देना पसंद करने लगा है बजाए किसी विदेशी महिला के।
जाते आप सब को यही कहना चाहूंगा कि समय विपरीत है। आप सब अपने अपने घरों में सुरक्षित रहे और देश को पुनः विश्वगुरु बनाने में अपना योगदान दे।
नमस्कार
Ji bilkul sahi kaha aapne...bahut badhiya
ReplyDeleteDhanywad.. aise hi support krte rahe
Deleteवास्तव मेँ देखा जाय तो कोई भी राजनीतिक पार्टी मुसलमानो के खिलाफ नहीं बोलती।कुछ गिने चुने नेता हैं जैसे योगी जी गिरिराज सिंह आदि जिनकी छवि हिन्दुत्व वाली है बस वो ही इन विषयों पर सही राय दे रहे हैं और निर्णय कर रहे हैं।अन्यथा तो सभी वोट बैंक के लिये इनको खुश करने मे ही लगे रहते हैं।
ReplyDeleteवही तो इस देश की समस्या है कि असली समस्या को कोई उठता है नहीं
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