यह विशेष प्रकार का संगठन स्वरूप है जो केवल भारत में ही पाया जाता है ।इसका अभिप्राय उस व्यवसाय से है जिसका संचालन एवं स्वामित्व एक संयुक्त हिंदू परिवार के सदस्य करते हैं। इसका प्रशासन हिंदू कानून के द्वारा होता है ।कोई व्यक्ति परिवार विशेष में जन्म लेने पर व्यवसाय का सदस्य बन जाता है एवं वह तीन पीढ़ियों तक व्यवसाय का सदस्य रह सकता है।" परिवार के मुखिया का व्यवसाय पर नियंत्रण होता है वह परिवार के सबसे ज्यादा आयु का व्यक्ति होता है एवं कर्ता कहलाता है।
परिवार के व्यवसाय में सदस्यों को शासित करने की दो प्रणालियां हैं:
1.दायभाग प्रणाली- यह पश्चिम बंगाल में प्रचलन में है जिसमें परिवार के स्त्री एवं पुरुष दोनों ही सदस्य सहसमान्शी होते हैं।
2.मिताक्षरा प्रणाली:- यह पश्चिम बंगाल को छोड़कर शेष भारत में लागू होती है। इसके अंतर्गत केवल पुरुष सदस्य ही साहसमांशी बन सकते हैं।
संयुक्त हिंदू परिवार व्यवसाय की आवश्यक विशेषताएं निम्नलिखित है:-
निर्माण:- संयुक्त हिंदू परिवार व्यवसाय हेतु परिवार में कम से कम 2 सदस्य एवं पैतृक संपत्ति जो विरासत में मिली हो,उसका होना जरूरी है। इस व्यवसाय के लिए किसी अनुबंध की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि इनकी सदस्यता जन्म के कारण मिलती है। यह हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 द्वारा शासित होता है।: परिवार के मुखिया को छोड़कर अन्य सभी सदस्यों का दायित्व व्यवसाय के सहसमांशी धन में उनके अंश तक सीमित होता है।
नियंत्रण:- पारिवारिक व्यवसाय पर परिवार के मुखिया या कर्ता का नियंत्रण होता है। वह करता व्यवसाय के सभी निर्णय एवं प्रबंधन के लिए अधिकृत होता है।निरंतरता:- परिवार के मुखिया या कर्ता के मृत्यु होने पर व्यवसाय में रुकावट नहीं होती है क्योंकि कर्ता के बाद की सबसे बड़ी आयु वाला सदस्य उसका स्थान ले लेता है जिससे व्यवसाय निरंतर चलता रहता है। सभी सदस्यों की सहमति से ही व्यवसाय समाप्त हो।
नाबालिक सदस्य:- संयुक्त हिंदू परिवार में जन्म लेने के कारण व्यवसाय में व्यक्ति का प्रवेश होता है अतः नाबालिक भी व्यवसाय के सदस्य हो सकते हैं।
संयुक्त हिंदू परिवार व्यवसाय के निम्नलिखित लाभ हैं:-
* परिवार के कर्ता के पास निर्णय लेने के पूर्ण अधिकार होते हैं।इसके कारण पारस्परिक मतभेद उत्पन्न नहीं होता, क्योंकि कोई भी उसके द्वारा निर्णय लेने के अधिकार में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। कर्ता की मृत्यु से व्यवसाय पर प्रभाव नहीं पड़ता एवं व्यवसाय समाप्त नहीं होता तथा निरंतर चलता रहता है। कर्ता को छोड़कर सभी सदस्यों का अंश सीमित होता है ।
*परिवार के सभी सदस्य मिलकर चलाते हैं, इसीलिए वे एक दूसरे के प्रति अधिक निष्ठावान होते हैं।
संयुक्त हिंदू परिवार व्यवसाय की कुछ सीमाएं निम्नलिखित है:-
* यह व्यवसाय मूल रूप से पैतृक संपत्ति पर आश्रित होता है ।इसीलिए इसमें सीमित पूंजी की समस्या बनी रहती है और व्यवसाय के विस्तार की संभावना न्यून हो जाती है।
* कर्ता पर और असीमित दायित्व का भार होता है नकी केबल प्रबंधन एवं निर्णय करने का दायित्व होता है ।
* कर्ता अकेले ही व्यवसाय का प्रबंधन करता है जो अन्य सदस्यों को कभी कभी स्वीकार्य नहीं होता है और आपस में टकराव हो जाता है।
* प्रबंध कौशल के अभाव के कारण व्यवसाय के निर्णय सही तरीकों से नहीं हो पाते।
✍️सुधांशु
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